गजलक्ष्मी व्रत

                                                                                                       गजलक्ष्मी व्रत 




 11 सितंबर 2024 से लेकर

25 सितंबर 2024 तक 



धन-धान्य और सुख, समृद्धि, संप्रदा का अधिपत्य देवी महालक्ष्मी जी आराधना का महत्वपूर्ण दिवस प्रारम्भ भाद्रपद की शुक्ल अष्टमी अर्थात राधा अष्टमी  से लेकर के आश्विन कृष्णा अष्टमी ( श्रद्धा अष्टमी) तक का है  ! 


इन पंद्रह दिन तक माँ लक्ष्मी का व्रत किया जाता है ! 



 इस व्रत को करने से आर्थिक संपदा के साथ पारिवारिक सुख समृद्धि एवं परिवार में स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है एवं संतान सुख और सौभाग्य की भी श्रेष्ठता बनी रहती है  !


???? पूजा करने की विधि ????


 घर की सुहागन स्त्रियां संध्या बेला के गोधूलि बेला मे माँ गजलक्ष्मी जी की प्रतिमा रख कर (लक्ष्मी जी के दोनों तरफ जो सफेद हाथी रहती है )!  या मिट्टी का सफेद हाथी बनवाकर लक्ष्मी जी के बाएं और दाएं रखकर पूजा करनी चाहिए  !


 गोधूलि बेला में लकड़ी के पाँटा पर लाल वस्त्र बिछा कर, फिर पाटा पर अस्टगंध से अष्टकमल बनाकर माँ गज लक्ष्मी जी को विराजमान करें ! फिर  माँ गजलक्ष्मी जी को चुनरी, नारियल, चंदन, फूल, अक्षत,फल और अन्य वस्तु मां गजलक्ष्मी जी को चढ़ाए और सुहागन स्त्रियां अपनी सुहाग की गहने से भी माँ गजलक्ष्मी जी को श्रृंगार  करें !


 फिर सुहागन स्त्रियां माँ गजलक्ष्मी जी के सामने अष्ट लक्ष्मी स्तोत्र का 11 पाठ करें ! 


 यह व्रत 11 सितंबर 2024 से प्रारंभ होकर 24 सितंबर 2024 तक पूर्ण होगा !


 दिनांक 25 सितंबर 2024 प्राता : लक्ष्मी जी की पूजा का पूर्णाहुति होगा ! पूर्णाहुति में ताल मखाने का  खीर बनाकर के मां को भोग लगाए ! 

 फिर क्षमा याचना करके मां का पूर्णाहुति करें ! ऐसा करने से आपकी मनोकामना, आपकी समस्त कामनाएं पूर्ण होगी  !



श्री अष्टलक्ष्मी स्त्रोतम:

 

 

आदि लक्ष्मी

 

सुमनस वन्दित सुन्दरि माधवि चंद्र सहोदरि हेममये ।

मुनिगण वन्दित मोक्षप्रदायिनी मंजुल भाषिणि वेदनुते ।

पङ्कजवासिनि देवसुपूजित सद-गुण वर्षिणि शान्तिनुते ।

जय जय हे मधुसूदन कामिनि आदिलक्ष्मि परिपालय माम् ।

धान्य लक्ष्मी:

 

अयिकलि कल्मष नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये ।

क्षीर समुद्भव मङ्गल रुपिणि मन्त्रनिवासिनि मन्त्रनुते ।

मङ्गलदायिनि अम्बुजवासिनि देवगणाश्रित पादयुते ।

जय जय हे मधुसूदनकामिनि धान्यलक्ष्मि परिपालय माम् ।

धैर्य लक्ष्मी:

 

जयवरवर्षिणि वैष्णवि भार्गवि मन्त्र स्वरुपिणि मन्त्रमये ।

सुरगण पूजित शीघ्र फलप्रद ज्ञान विकासिनि शास्त्रनुते ।

भवभयहारिणि पापविमोचनि साधु जनाश्रित पादयुते ।

जय जय हे मधुसूदन कामिनि धैर्यलक्ष्मि सदापालय माम् ।

गज लक्ष्मी:

 

जय जय दुर्गति नाशिनि कामिनि वैदिक रूपिणि वेदमये ।

रधगज तुरगपदाति समावृत परिजन मंडित लोकनुते ।

हरिहर ब्रम्ह सुपूजित सेवित ताप निवारिणि पादयुते ।

जय जय हे मधुसूदन कामिनि गजलक्ष्मि रूपेण पालय माम् ।

सन्तान लक्ष्मी:

 

अयि खगवाहिनी मोहिनि चक्रिणि रागविवर्धिनि ज्ञानमये ।

गुणगणवारिधि लोकहितैषिणि सप्तस्वर भूषित गाननुते ।

सकल सुरासुर देव मुनीश्वर मानव वन्दित पादयुते ।

जय जय हे मधुसूदन कामिनि सन्तानलक्ष्मि परिपालय माम् ।

विजय लक्ष्मी:

 

जय कमलासनि सद-गति दायिनि ज्ञानविकासिनि गानमये ।

अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर भूषित वसित वाद्यनुते ।

कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शङ्करदेशिक मान्यपदे ।

जय जय हे मधुसूदन कामिनि विजयक्ष्मि परिपालय माम् ।

विद्या लक्ष्मी:

प्रणत सुरेश्वरि भारति भार्गवि शोकविनाशिनि रत्नमये ।

मणिमय भूषित कर्णविभूषण शान्ति समावृत हास्यमुखे ।

नवनिद्धिदायिनी कलिमलहारिणि कामित फलप्रद हस्तयुते ।

जय जय हे मधुसूदन कामिनि विद्यालक्ष्मि सदा पालय माम् ।

धन लक्ष्मी:

 

धिमिधिमि धिन्धिमि धिन्धिमि-दिन्धिमी दुन्धुभि नाद सुपूर्णमये ।

घुमघुम घुङ्घुम घुङ्घुम घुङ्घुम शङ्ख निनाद सुवाद्यनुते ।

वेद पुराणेतिहास सुपूजित वैदिक मार्ग प्रदर्शयुते ।

जय जय हे कामिनि धनलक्ष्मी रूपेण पालय माम् ।

 

अष्टलक्ष्मी नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणि ।

विष्णुवक्षःस्थलारूढे भक्तमोक्षप्रदायिनी ।।

शङ्ख चक्र गदाहस्ते विश्वरूपिणिते जयः ।

जगन्मात्रे च मोहिन्यै मङ्गलम शुभ मङ्गलम ।

। इति श्री अष्टलक्ष्मी स्तोत्रम सम्पूर्णम ।

 



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